मंगल ग्रह की सतह के नीचे विशाल पानी के भंडार होने का खुलासा हुआ है, जो महासागर बनाने के लिए पर्याप्त हैं। नासा द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के विश्लेषण में पाया गया है कि तरल पानी सतह से करीब 11.5 से 20 किलोमीटर नीचे, ग्रह की क्रस्ट के अंदर चट्टानों की दरारों और छिद्रों में मौजूद है। हालांकि, इन भंडारों का उपयोग भविष्य में मंगल ग्रह पर कॉलोनी बनाने के लिए पानी की आपूर्ति में नहीं किया जा सकेगा।
मंगल ग्रह पर भूजल का विशाल भंडार
अनुसंधान के अनुसार, मंगल ग्रह के भूजल का क्षेत्रफल पृथ्वी के आकार का लगभग आधा है और यह पूरे ग्रह में दो किलोमीटर की गहराई तक फैला हुआ है। अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (यूसी) बर्कले के शोधकर्ताओं और अन्य वैज्ञानिकों ने बताया कि तीन अरब साल पहले मंगल से महासागर गायब हो गए थे, लेकिन हालिया अध्ययन में यह नई जानकारी सामने आई है। यह अध्ययन जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है।
मंगल पर पानी के बारे में नई खोज
पहले माना जाता था कि मंगल का चुंबकीय क्षेत्र ध्वस्त होने के बाद, सौर हवाओं ने इसके वातावरण को नष्ट कर दिया और ग्रह का पानी अंतरिक्ष में खो गया। हालांकि, नए संकेत बताते हैं कि अधिकांश पानी अंतरिक्ष में नहीं गया, बल्कि भूपर्पटी में छनकर जमा हो गया। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि ध्रुवों पर जमे हुए पानी के अलावा, मंगल पर अभी भी तरल पानी मौजूद है। शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि पानी जमीन की सतह से इतनी गहराई में है कि इसे ऊपर लाना एक चुनौती है, जैसे कि पृथ्वी पर भी एक किलोमीटर गहरा छेद करना मुश्किल होता है।
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जीवन के प्रमाण का अभाव
अध्ययन के लेखक माइकल मंगा ने इस पर प्रकाश डाला कि जबकि पृथ्वी की गहरी खदानों और समुद्र की तलहटी में जीवन के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं, मंगल ग्रह पर ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है। पृथ्वी पर जहां भी पानी और ऊर्जा के स्रोत मौजूद हैं, वहां जीवन पनपता है। लेकिन मंगल पर, जहां वैज्ञानिकों ने पानी के भंडार और अन्य अनुकूल स्थितियां खोजी हैं, वहां जीवन का कोई संकेत नहीं मिला है। यह एक ऐसा रहस्य है जिसे वैज्ञानिक अभी तक समझने में असमर्थ हैं। मंगल ग्रह की सतह के नीचे के वातावरण में जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों की अनुपस्थिति या कुछ और कारण हो सकते हैं, जिन्हें अभी तक पूरी तरह से नहीं समझा गया है। यह खोज मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना को लेकर नए सवाल खड़े करती है और आगे के शोध की आवश्यकता को दर्शाती है।
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