पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ इन दिनों विदेश नीति में दबाव महसूस कर रहे हैं। सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच बढ़ती दोस्ती ने इस्लामाबाद की चिंता बढ़ा दी है। इसी कड़ी में शहबाज़ शरीफ़ अब तुर्की का रुख कर चुके हैं। उन्होंने हाल ही में तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन से मुलाकात की, जिससे यह संकेत मिला कि पाकिस्तान अब नए सहयोगियों की तलाश में है।
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सूत्रों के अनुसार, शहबाज़ शरीफ़ ने तुर्की को सऊदी अरब और भारत के बढ़ते संबंधों की पृष्ठभूमि में रणनीतिक साझेदार के रूप में देखने की इच्छा जताई है। पाकिस्तान ने इस मुलाकात में रक्षा, व्यापार और क्षेत्रीय सुरक्षा पर बात की। एर्दोगन ने भी शहबाज़ को समर्थन देने का भरोसा दिया, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि तुर्की अपनी सीमित स्थिति के कारण खुलकर पाकिस्तान का साथ नहीं दे पाएगा।
MBS–मोदी की केमिस्ट्री ने पाकिस्तान को परेशान किया
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हाल ही में सऊदी अरब और भारत ने व्यापार, निवेश और सुरक्षा क्षेत्रों में कई अहम समझौते किए हैं। मोदी और MBS की व्यक्तिगत केमिस्ट्री ने भारत-सऊदी रिश्तों को एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया है। इस बढ़ती नजदीकी ने पाकिस्तान को रणनीतिक रूप से अलग-थलग कर दिया है। पहले जो सऊदी अरब पाकिस्तान का सबसे बड़ा समर्थक माना जाता था, अब वह भारत में बड़े निवेश की तैयारी कर रहा है।
पाकिस्तान इस बदले समीकरण से बेचैन हो गया है। वह अब एर्दोगन जैसे नेताओं की तरफ उम्मीद से देख रहा है, जिनके भारत के साथ कुछ मुद्दों पर मतभेद रहे हैं। लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि एर्दोगन केवल कूटनीतिक समर्थन दे सकते हैं, जबकि आर्थिक और राजनीतिक वास्तविकता में पाकिस्तान को ज़्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
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