सचिन पायलट अब अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ यह दावा कर रहे हैं कि यह भ्रष्टाचार और घोटालों से भरी हुई है। यह न केवल अशोक गहलोत के लिए बल्कि कांग्रेस पार्टी के लिए भी बुरी खबर है, जो गहलोत सरकार की जनहितकारी उपलब्धियों के आधार पर प्रचार करने की योजना बना रही है। अगर पायलट अपनी भूख हड़ताल जारी रखते हैं, तो इससे गहलोत सरकार की सार्वजनिक छवि को नुकसान होगा और आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत की संभावना काफी कम हो जाएगी। इसलिए कांग्रेस पार्टी ने पायलट को अनशन बंद करने की हिदायत दी है।
पायलट का अनशन पार्टी हितों के खिलाफ और पार्टी विरोधी गतिविधि
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने एक दिन पहले सोमवार रात को स्टेटमेंट जारी कर साफ चेता दिया है कि सचिन पायलट का अनशन पार्टी हितों के खिलाफ और पार्टी विरोधी गतिविधि है। अगर सरकार के साथ उनके कुछ इश्यू हैं, तो उन्हें पार्टी फोरम पर डिस्कस किया जा सकता है, लेकिन उसे मीडिया और जनता के बीच ले जाना ठीक नहीं है। रंधावा ने यह भी कहा कि मैं पिछले पांच महीने से राजस्थान में AICC का प्रभारी इंचार्ज हूं, लेकिन सचिन पायलट जो मुद्दा उठाया है, उसे मेरे साथ कभी डिसकस नहीं किया। मैं उनके संपर्क में हूं और अभी भी यह अपील करता हूं कि सचिन पायलट को शांतिपूर्ण तरीके से बातचीत करनी चाहिए, क्योंकि इसमें कोई विवाद नहीं है कि वह पार्टी के एसेट हैं।
सचिन पायलट भी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में यह साफ कर चुके हैं कि वह दो बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लेटर लिख चुके हैं। जो 28 मार्च और 2 नवंबर 2022 को सीएम को भेजे गए। रंधावा ने सीएम से भी वो लेटर लिए हैं और उनकी जानकारी में आ चुके हैं। उसके बावजूद भ्रष्टाचार के मामलों पर अब तक कोई कार्रवाई या जांच नहीं हुई, यह पायलट की पीड़ा है।
कांग्रेस आलाकमान को सचिन पायलट अपने सुझाव दे चुके हैं, उन सुझावों में भी यह मुद्दा शामिल था। संभव है कि सुखविंदर सिंह रंधावा नए प्रभारी आए हैं, इसलिए पायलट ने इस मुद्दे पर उनसे चर्चा नहीं की हो, क्योंकि पायलट का डायलॉग राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी और कांग्रेस हाईकमान से सीधे रहा है। पूर्व प्रभारी अजय माकन की जानकारी में सब बातें थीं। जब कांग्रेस आलाकमान ने सुलह करवाई थी, तब पायलट को कुछ आश्वासन भी दिए गए थे, जिनके पूरा होने का वो आज भी इंतज़ार कर रहे हैं।
आर-पार की लड़ाई
शायद पायलट को अनशन की घोषणा इसीलिए करनी पड़ी है, क्योंकि अब विधानसभा चुनाव में 6-7 महीने का ही समय बचा है और उनके उठाए मुद्दों पर कोई कार्रवाई होती नजर नहीं आ रही है। सूत्र यह भी बताते हैं कि सचिन पायलट ने अब आर-पार की लड़ाई का मूड बना लिया है। वह चाहते हैं कि चुनाव से पहले खुद को प्रदेश में मजबूती से जनता के बीच स्टेबलिश किया जाए। मुद्दों के आधार पर गहलोत को घेरने की भी यह रणनीति है। बहरहाल आगे होने वाली अनुशासनात्मक कार्रवाई से सचिन पायलट भी अच्छी तरह वाकिफ होंगे, सोच समझकर ही उन्होंने यह डिसीजन लिया है, लेकिन सचिन पायलट के इस चुनावी स्टेप के पीछे किसका सपोर्ट है, यह बड़ा सवाल है।
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