नरेंद्र मोदी के समर्थकों के बीच पिछले कुछ वर्षों से एक ही सवाल प्रमुख रहा है—अगर मोदी नहीं तो कौन?
पहले यह सवाल होता था कि विपक्ष में ऐसा कौन है जो मोदी की जगह ले सकता है, लेकिन अब यह भी उठने लगा है कि बीजेपी के भीतर कौन है जो उनकी जगह ले सकता है।
तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाले नरेंद्र मोदी अगले साल 75 वर्ष की उम्र को छूने वाले हैं। 75 की उम्र के राजनीतिक मायने को समझने के लिए कुछ तारीख़ों और कुछ बयानों पर गौर करिए.
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जेल से जमानत पर बाहर आए केजरीवाल: उनके द्वारा उठाए गए सवाल
मई 2024 में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल से ज़मानत पर बाहर निकले और बीजेपी को लेकर कई दावे किए. मगर एक दावा ऐसा रहा, जिस पर अमित शाह और नरेंद्र मोदी तक को अपना पक्ष रखना पड़ा.एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि ये सभी बयान 2024 के लोकसभा चुनावों के परिणाम घोषित होने से पहले के हैं।बीजेपी का 400 सीटों का सपना चूर हो चुका है।बीजेपी के भीतर नरेंद्र मोदी का संभावित वारिस कौन हो सकता है और इसमें आरएसएस की भूमिका क्या हो सकती है?आरएसएस की भूमिका इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि विशेषज्ञों के अनुसार, जब बीजेपी कमजोर होती है, तब संघ की पार्टी के भीतर भूमिका अधिक हो जाती है।
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नरेंद्र मोदी कि रिटायरमेंट की बात: यह धारणा कहां से आई
2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तो लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेताओं को न तो संसदीय बोर्ड में स्थान मिला और न ही कैबिनेट में. उन्हें मार्गदर्शक मंडल में शामिल किया गया, जबकि आडवाणी उस समय 86 साल के थे और जोशी 80 साल के थे.जून 2016 में मध्य प्रदेश कैबिनेट के विस्तार के दौरान बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को 75 साल की उम्र पार करने के बाद मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसी प्रकार, 80 साल की उम्र पार कर चुकी पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को भी कोई नई जिम्मेदारी नहीं दी गई, और हिमाचल के वरिष्ठ नेता शांता कुमार को भी इसी तरह किनारे कर दिया गया।
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