डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मद्रास हाईकोर्ट ने वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल से जुड़ा महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि यदि उनके बच्चे या करीबी रिश्तेदार उनकी देखभाल में विफल रहते हैं, तो वरिष्ठ नागरिकों को गिफ्ट में दी गई संपत्ति को रद्द करने का अधिकार है।
न्यायमूर्ति एस.एम. सुब्रमण्यम और के. राजशेखर की खंडपीठ ने दिवंगत एस. नागलक्ष्मी की पुत्रवधू एस. माला द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया। नागलक्ष्मी ने अपने बेटे केशवन के पक्ष में एक समझौता विलेख तैयार किया था, यह आशा करते हुए कि वह और उसकी बहू उनकी देखभाल करेंगे। लेकिन केशवन अपनी मां की देखभाल करने में असफल रहा। इसके बाद, बेटे की मृत्यु के बाद, बहू ने भी उनके साथ बुरा व्यवहार किया। इसके कारण नागलक्ष्मी ने आरडीओ, नागपट्टिनम से संपर्क किया।
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बेटे के भविष्य के लिए लिया था फैसला
बयान दर्ज करने के बाद उसने प्यार और स्नेह से अपने बेटे के भविष्य के लिए विलेख लिखा था और माला के बयानों पर विचार करने के बाद, आरडीओ ने समझौता विलेख को रद्द कर दिया। इसे चुनौती देते हुए, माला ने एक याचिका दायर की और इसे खारिज कर दिया गया। माला ने फिर से याचिका दायर की।
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क्या बोला कोर्ट?
पीठ ने कहा कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 23(1) को ऐसे मामलों में सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया है, जहां वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति उपहार या समझौते के माध्यम से इस उम्मीद के साथ ट्रांसफर करते हैं कि वह व्यक्ति उनकी बुनियादी आवश्यकताओं का ध्यान रखेगा।
पीठ ने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति इन दायित्वों को पूरा करने में विफल रहता है, तो वरिष्ठ नागरिक के पास इसे रद्द करने के लिए न्यायाधिकरण से घोषणा प्राप्त करने का अधिकार है।
अदालत ने आगे कहा कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत आरडीओ के समक्ष प्रस्तुत मामले के तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि बुजुर्ग महिला की उम्र उस समय 87 वर्ष थी और उनकी बहू द्वारा उनकी पूरी तरह उपेक्षा की जा रही थी।
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