22 साल पहले, भारत की सुप्रीम लेजिस्लेटिव बॉडी यानी संसद पर आतंकवादी हमला हुआ, जिसने देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया था। 13 दिसंबर 2001 का वो काला दिन आज भी देश के लोगों के जेहन में ताजा है। इस दिन हमारे लोकतंत्र के मंदिर पर हमला किया गया था। जिसमें कई जवान शहीद हो गए थे।
पीएम मोदी समेत इन नेतओं ने शहीदों को दी श्रद्धांजलि
आतंकी हमले की बरसी के मौके पर देश के उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पीएम मोदी, लोकसभा सांसद ओम बिरला अमित शाह, मल्लिकार्जुन खरगे समेत कई सांसदों ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
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संसद के शहीदों के परिवारवालों से मिले पीएम मोदी
इस मौके पर शहीदों के परिवारजन भी मौजूद थे। श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद पीएम मोदी ने शहीदों के परिवार वालों से मुलाकात की और उनका हालचाल पूछा और सांत्वना दी।
संसद हमले की बरसी के मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा, “राष्ट्र हमेशा उन बहादुर सुरक्षा कर्मियों का ऋणी रहेगा जिन्होंने 2001 के आतंकवादी हमले में अपनी जान कुर्बान कर दी।”
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कैसे हुआ था संसद पर हमला?
पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के पांच आतंकवादी गृह मंत्रालय और संसद के नकली स्टिकर लगाकर एक सफेद एम्बेसडर में परिसर में घुसे। यह कहना गलत नहीं होगा कि उस समय संसद की सुरक्षा व्यवस्था आज जितनी चाक चौबंद नहीं थी।
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एके47 राइफल, ग्रेनेड लांचर, पिस्तौल और ग्रेनेड लेकर आतंकवादी संसद परिसर के आसपास तैनात सुरक्षा घेरे में पहुंच गए। जैसे ही वे कार को अंदर ले कर गए, स्टाफ सदस्यों में से एक, कांस्टेबल कमलेश कुमारी यादव को उनकी गतिविधियों पर संदेह हुआ।
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यादव, पहली सुरक्षा अधिकारी, आतंकवादियों की हमले में शहीद
यादव आतंकवादियों की कार के पास जाने वाली पहली सुरक्षा अधिकारी थीं। कुछ संदिग्ध होने का एहसास होने पर वो वापस गेट नंबर 1 को सील करने के लिए अपनी पोस्ट पर गईं, जहां वह तैनात थीं। आतंकवादियों ने यादव पर ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं। उन पर 11 राउंड फायरिंग की गई। एक सुसाइड बॉम्बर को रोकते हुए यादव की मौके पर ही मौत हो गई। यादव की हत्या करने के बाद आतंकी अंधाधुंध फायरिंग करते हुए आगे बढ़ गए। यह आतंक लगभग 30 मिनट तक चला, इस दौरान कुल नौ लोग मारे गए और 18 अन्य घायल हो गए। पांचों आतंकियों को भी बिल्डिंग के बाहर ढेर कर दिया गया।
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दिल्ली पुलिस की आतंकवाद विरोधी इकाई – स्पेशल सेल – जिसे 1986 में राष्ट्रीय राजधानी में आतंकवाद, संगठित अपराध और अन्य गंभीर अपराधों के मामलों को रोकने, पता लगाने और जांच करने के लिए स्थापित किया गया था, ने जांच का जिम्मा संभाला। इस आतंकी हमले के पीछे मोहम्मद अफजल गुरु, एसए आर गिलानी और शौकत हुसैन समेत पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई शामिल थे। 12 साल बाद नौ फरवरी 2013 को अफजल गुरु को फांसी दे दी गई थी।
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