November 22, 2024

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Mahavir Jayanti

भगवान महावीर ने संसार को दिया ‘जियो और जीने दो’ का संदेश

महावीर जयंती हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन जैन धर्म के अनुयायी 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती मनाते हैं। इस साल यह पर्व 4 अप्रैल को मनाया जाएगा। ऐसा कहा जाता है कि भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व के आसपास बिहार के कुंडलपुर के शाही परिवार में हुआ था। भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे।

जीयो और जीने दो

भगवान महावीर के प्रारम्भिक तीस वर्ष राजसी वैभव और विलास के दलदल में कमल के समान रहे। उसके बाद बारह वर्ष घनघोर जंगल में मंगल साधना और आत्म जागृति की आराधना में वे इतने लीन हो गए कि उनके शरीर के कपड़े गिरकर अलग होते गए। भगवान महावीर की बारह वर्ष की मौन तपस्या के बाद उन्हें ‘केवलज्ञान ‘ प्राप्त हुआ। केवल ज्ञान प्राप्त होने के बाद तीस वर्ष तक महावीर ने जनकल्याण हेतु चार तीर्थों साधु -साध्वी , श्रावक-श्राविका की रचना की। इन सर्वोदय तीर्थों में क्षेत्र ,काल, समय या जाति की सीमाएं नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। उनका कहना था कि हम दूसरों के प्रति भी वही व्यवहार व विचार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हों।

यही उनका ‘ जीयो और जीने दो ‘ का सिद्धांत है । उन्होंने न केवल इस जगत को मुक्ति का सन्देश दिया, अपितु  मुक्ति की सरल और सच्ची राह भी बताई । आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु सत्य , अहिंसा , अपरिग्रह , अचौर्य  और ब्रह्मचर्य जैसे पांच मूलभूत सिद्धांत भी बताए । इन्हीं सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारकर महावीर ‘ जिन ‘ कहलाए । जिन से ही ‘जैन’ बना है अर्थात जो काम,तृष्णा ,इन्द्रिय व भेद जयी है वही जैन है। भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया और जितेंद्र कहलाए। उन्होंने शरीर को कष्ट देने को ही हिंसा नही माना बल्कि मन , वचन व कर्म से भी किसी को आहत करना उनकी दृष्टि से हिंसा ही है ।क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- ‘मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूँ। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूँ। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा माँगता हूँ। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूं।’