September 20, 2024

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मैं 1947 का हिन्दुस्तान बोल रहा हूं- पहली कड़ी

1947…जश्न और जख्म का साल। जनवरी से 15 अगस्त 1947 के बीच हिन्दुस्तान में जो भी हुआ, वह इतिहास के पन्नों में अमर हो गया। 15 कहानियों की इस सीरीज की पहली कड़ी में आज जानिए, हिन्दुस्तान से ब्रिटेन तक कैसी उथल-पुथल मची थी जी हां! मैं 1947 का हिन्दुस्तान बोल रहा हूं। और मुझे बोलना पड़ रहा है, क्योंकि जनवरी से 15 अगस्त के बीच का वो सबसे चमकदार और सबसे दागदार वक्त मुझ पर कैसे गुजरा मैं ही जानता हूं। एक तरफ मेरा जिस्म खून की लाली में सराबोर था तो दूसरी तरफ यह होली के गुलाल में नहा रहा था।

जनवरी का वो दिन मुझे अच्छी तरह याद है। गुनगुनी धूप खिली थी तारीख थी- 22 जनवरी 1947, दिन- बुधवार, वक्त- सुबह 11 बजे। जगह- दिल्ली। संविधान सभा कक्ष में संविधान सभा के सदस्य जुटे हुए थे। मौका था उस उद्देश्य प्रस्ताव को पास करने का, जिसे 13 दिसंबर 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई संविधान सभा में 210 सदस्यों की उपस्थिति में पं. जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्तुत किया था। इसके पास होते ही हिन्दुस्तानियों की यह हुंकार अंग्रेजों सहित पूरी दुनिया ने सुन ली थी कि मैं एक पूर्ण संप्रभुता संपन्न गणराज्य बनूंगा, जो अपना संविधान खुद बनाएगा।