1999 में लगभग 60 दिनों तक चली करगिल युद्ध में भारतीय सेना को पहली महत्वपूर्ण जीत 12-13 जून 1999 की सुबह द्रास सेक्टर की तोलोलिंग पहाड़ी पर मिली। इस पहाड़ी पर विजय प्राप्त करने की जिम्मेदारी 18 ग्रेनेडियर्स और दो राजपूताना राइफल्स को सौंपी गई थी। कठिन परिस्थितियों में हासिल की गई इस जीत के कई नायक थे, जिनमें दो राजपूताना राइफल्स के 10 कमांडो भी शामिल थे। इन कमांडो ने पहाड़ी पर चढ़कर दुश्मन पर हमला किया और कई बंकर नष्ट कर दिए। दुखद बात यह थी कि उन 10 कमांडो में से नौ शहीद हो गए थे। केवल एक जीवित बचे, नायक दिगेंद्र कुमार, जिन्हें सेना में कोबरा के नाम से जाना जाता था।
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कोबरा: वीरता और साहस का परिचय
राजस्थान में नीमका थाना जिले के छोटे से गांव में जन्मे दिगेंद्र ने अपने साहस और वीरता से इतना बड़ा काम किया कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी भी उनके सामने बौनी हो गई। तोलोलिंग पहाड़ी पर पाकिस्तानी सेना ने कब्जा जमा लिया था। इसे पाकिस्तानी सेना से छुड़ाने में भारतीय सेना के 68 जवान शहीद हो चुके थे। तब तोलोलिंग फतह की जिम्मेदारी दो राजपूताना राइफल्स को दी गई। तोलोलिंग बेहद अहम पॉइंट था, मतलब यह करगिल युद्ध की अहम पहाड़ी थी। उस समय सेनाध्यक्ष रहे जनरल वीपी मलिक ने इसे टर्निंग पॉइंट ऑफ करगिल वार कहा था।
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साहसिक रणनीति और पहला हमला
दिगेंद्र कुमार बताते हैं कि कर्नल एमबी रविंद्रनाथ हमारे सीओ साहब ने तोलोलिंग पर फिर से कब्जा करने का आदेश दिया। हमारी टीम ने सामने से न जाकर पीछे से दुश्मन को सरप्राइज करने की रणनीति बनाई। इसके लिए रेकी की गई। रेकी कर वापस नीचे पहुंचे, तो चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ ने हमारा दरबार लिया। जनरल मलिक ने पूछा कि आप लोगों ने रेकी कर ली। अब आगे क्या करना है। तो हमने कहा कि सर अभी अटैक करना है।
वे बोले, आपको हम समय देंगे, आप अपना बंदोबस्त कर लो जाने का। तो मैंने कहा कि सर मुझे रस्सा चाहिए, ताकि उसे बांध कर हम तोलोलिंग के ऊपर हम पीछे से चढ़ सकें। इस पर जनरल मलिक ने कहा कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? इस पर मैंने कहा कि मैं करूंगा ये काम। तो वे बोले कि अगर ऐसा हुआ तो हिंदुस्तान की फर्स्ट विक्ट्री टू राज रिफ के नाम होगी।
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रणनीति की सफलता और चुनौतीपूर्ण चढ़ाई
दिगेंद्र कुमार आगे बताते हैं कि हमने 14 घंटे में वो रस्सा बांध दिया और बांधने के बाद मैंने दुश्मन का पूरा मूवमेंट चेक किया और सीओ साहब को हर मूवमेंट की खबर देता रहा। 12 जून को मुझे नीचे बुलाया गया और दुश्मन की संख्या के बारे में जानकारी ली गई। वह बताते हैं कि हमारा प्लान यह था कि हमारी टीम रस्सा बांध कर पीछे से चढ़ेगी और वहां अपनी एलएमजी (लाइट मशीन गन) लगाएंगे।
और वहां से गोलियां बरसा कर दुश्मन का ध्यान बटाएंगे, ताकि हमारी चार्ली कंपनी और डेल्टा कंपनी सामने से दुश्मन पर अटैक करे सके और इस तरह हमारा हमला कामयाब हो जाएगा। लेकिन यह काम काफी मुश्किल था। तोलोलिंग की पहाड़ी पर रस्सी के सहारे पीछे से चढ़ना इतना आसान नहीं था। उन्होंने 10 प्रशिक्षित सैनिकों की टुकड़ी के साथ, चढ़ाई जारी रखी और आगे से भारतीय सेना की दूसरी टुकड़ी ने फायरिंग कर पाकिस्तानी सेना को उलझाए रखा।
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