छत्रपति शिवाजी महाराज के वाघ नख (Wagh Nakh) और खंजर का भारत वापस आने की संभावना है। उन्होंने इस हथियार का प्रयोग 1659 में बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान को पराजित करने के लिए किया था। इसके बाद, यह हथियार अंग्रेजों द्वारा ब्रिटेन के लिए गिफ्ट के रूप में ले जाया गया था। हालांकि अब सुनने में आ रहा है कि ब्रिटेन इसे भारत को वापस करने के लिए तैयार हो रहा है।
महाराष्ट्र के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री सुधीर मुनगंटीवार सितंबर 2023 के आखिर में इसे वापस भारत लाने की आधिकारिक प्रक्रिया के लिए लंदन जाएँगे। वहाँ वे विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करेंगे। इसी संग्रहालय में ये नख रखा हुआ है। यदि सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो ‘वाघ नख’ इसी साल देश में आ जाएगा।
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कौन जाएगा लंदन?
सांस्कृतिक मंत्रालय ने बताया है कि मंत्री मुनगंटीवार के साथ संस्कृति मंत्रालय के प्रमुख सचिव डॉ. विकास खड़गे और राज्य के पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय के निदेशक डॉ. तेजस गर्गे लंदन का दौरा करेंगे। यह तीन सदस्यीय टीम की 29 सितंबर से 4 अक्टूबर तक छह दिनों की यात्रा के लिए ब्रिटेन जाएगा। अधिकारियों ने कहा कि स्टील से बने वाघ नख में चार पंजे होते हैं जो एक पट्टी पर लगे होते हैं और पहली तथा चौथी ऊँगलियों के लिए दो छल्ले होते हैं।
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कैसे भारत से ब्रिटेन पहुँचा वाघ नख?
महाराष्ट्र के अधिकरियों के मुताबिक, वाघ नख मुट्ठी में पहने जाने वाला अपनी तरह का पहला पंजा खंजर है। ये बड़ी बिल्लियों यानी शेर, बाघ, चीते के पंजों से प्रेरणा लेकर बनाया गया है। ये अंगुली के जोड़ों पर पहना जाता है। ये हथेली के नीचे छुपा कर पहना जा सकता है। इसमें चार ब्लेड होते हैं जो दस्तानों या क्रॉस बार में फिक्स होते हैं।
ये दुश्मन की स्किन और माँसपेशियों को चीर देने के लिए डिजाइन किया गया होता है। ये वाघ नख सतारा कोर्ट में शिवाजी के वंशजों के पास था। 1818 में अंग्रेज अधिकारी जेम्स ग्रांट डफ को यह उपहार के तौर पर मिला था। डफ को उस वक्त ईस्ट इंडिया कंपनी ने सतारा स्टेट का रेजिडेंट राजनीतिक एजेंट बनाकर भेजा था। उसने सतारा की कोर्ट में 1818 से लेकर 1824 तक अपनी सेवाएँ दी थी। इसके बाद वो वाघ नख अपने साथ ब्रिटेन ले गया। वहाँ उसके वंशजों ने इस हथियार को विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय को दान कर दिया।
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