किसी भी अस्पताल में मरीजों की देखभाल नर्स की जवाबदेही डॉक्टर से भी कहीं ज्यादा होती है। किसी युद्धग्रस्त देश में नर्सों की यह भूमिका और भी अहम हो जाती है। यूक्रेन में रूस के हमलों में घायल लोगों के लिए अस्पतालों में नर्सों की सेवाभावना और त्याग की गाथाएं सामने आ रही हैं। अंतरराष्ट्रीय नर्सेज डे पर ऐसी ही नर्सों की कहानियां-
यूक्रेन : आर्ट टीचर बन गई थीं, युद्ध हुआ तो फिर संभाल रहीं घायलों को
बिलोहोरोड्का में पति के साथ रहने वाली इन्ना विश्नेवस्काया कुछ सालों से आर्ट टीचर थीं। फरवरी में शुरू हुए युद्ध ने उन्हें फिर से मिलिट्री यूनिफॉर्म, हेलमेट और बुलेटप्रुफ जैकेट पहनने में जरा भी संकोच नहीं किया। उन्होंने पैरामेडिक का पुराना प्रोफेशन अपनाया। वे बताती हैं, ‘2014 के युद्ध में भी मैं पैरामेडिक थी। युद्ध खत्म हुआ, तो शौक पूरा करने के लिए आर्ट टीचर बन गई। सोचा नहीं था कि फिर एक बार वहीं काम करना पड़ेगा।’
रूसी हमलों के बीच घायलों तक पहुंचने के लिए मोबाइल असिस्टेंट टीम बनाई है। कार से घायलों तक पहुंचती हैं। ड्राइवर साथ रहते हैं, जो बॉडीगार्ड भी हैं। दउन क्षेत्रों में काम करना मुश्किल है, जहां से रूसी सेना लौटी है, क्योंकि वे लैंड माइंस बिछा गए हैं।
अस्पताल से घर जाते समय विस्फोट में गंवाया पैर, पति ने दिया हौसला
रूसी हमलों के बीच भी बच्चों की नर्स ओक्साना ने लिसिचांस्क के अस्पताल को नहीं छोड़ा। एक दिन घर
जाते समय लैंड माइन विस्फोट की चपेट में आने से दोनों पैर और एक हाथ की चार उंगलियां गंवानी पड़ीं
ओक्साना कहती हैं- पति विक्टर और दो बच्चे हैं। लीव के अस्पताल में इलाज के दौरान विक्टर ने फिर
से शादी करके हिम्मत दी। आगे के इलाज और प्रोस्थेटिक लेग्स के लिए जर्मनी जाऊंंगी। जल्द ही काम
पर लौटने की कोशिश करूंगी।
ऑस्ट्रेलिया से आई मां-बेटी कर रहीं मदद
ऑस्ट्रेलिया की एबोनी हेवेट, लीव के अस्पताल में मां ट्रिसिया मिलर के साथ काम कर रही हैं। एबोनी बताती
हैं- हम इमरजेंसी यूनिट में हैं, इसलिए काम की समय सीमा तय नहीं होती। अगर कोई हमला हुआ तो
आने वाले घायलों की संख्या पता नहीं होती, हमेशा तैयार रहना होता है। कई बार अटैक साइट पर जाकर
घायलों को एंबुलेंस के जरिए अस्पताल लाना होता है। युद्ध के बीच काम करने का ये पहला अनुभव है, लेकिन
कोविड इमरजेंसी में दूसरे देश में काम किया है।
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