मुफ्त, मुफ्त, मुफ्त! यह आवाज त्योहारी सेल और चुनावी साल दोनों समय खूब सुनने को मिलती है। राजनीतिक दलों के मुफ्त सुविधाओं के वादे पर माहौल अभी इतना गर्म है कि पार्टियों की जुबानी जंग सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है। 3 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में CJI एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि मुफ्त सुविधाओं के वादे कितने सही हैं और कितने गलत, इस पर विचार के लिए एक व्यापक पैनल बनाया जाना चाहिए। पैनल का गठन होना तो अभी बाकी है, मगर ‘रेवड़ी’ बांटने के नाम पर पार्टियों की जंग जारी है। मगर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मुफ्त सुविधाओं का हल्ला भले ही भारत में ज्यादा हो, लेकिन इस मामले में भी यूरोपीय देश हमसे कहीं आगे हैं।
भारत में बिजली-पानी और ईंधन पर सब्सिडी पर सबसे ज्यादा शोर है। जबकि फिनलैंड, स्वीडन और डेनमार्क समेत कई देशों में शिक्षा और इलाज पूरी तरह मुफ्त है। यानी साधारण सर्दी-जुकाम से लेकर ऑर्गन ट्रांसप्लांट जैसे खर्चीले इलाज तक सब कुछ मुफ्त। शिक्षा भी बिना किसी भेदभाव के सबके लिए नर्सरी से PhD तक पूरी तरह मुफ्त है। कई यूरोपीय देश मकान किराया देने में भी आर्थिक मदद देते हैं। अमेरिका में भी नौकरी जाने पर सोशल सिक्योरिटी अलाउंस का प्रावधान है।
दरअसल, मुख्य बहस ये है कि जनता के टैक्स से ही उसके लिए मूलभूत सुविधाएं मुफ्त दी जाएं या वोटबैंक के हिसाब से टैक्स के पैसे का मुफ्त की योजनाओं पर गलत इस्तेमाल हो। जानिए, किस तरह दूसरे देश मुफ्त सुविधाएं देते हैं और किस तरह भारत में मुफ्त सुविधाएं राज्यों के लिए आर्थिक संकट का कारण बन गई हैं।
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