पाकिस्तान सरकार की ओर से हाल ही में सीमा पार अफ़ग़ानिस्तान के अंदर कार्रवाई के संकेत दिए जाने के बाद एक ओर जहाँ अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार ने इसे नासमझी भरा क़दम बताया है, वहीं सरकार को पाकिस्तान के अंदर भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
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पाकिस्तान का रुख़ यह है कि चरमपंथ की लहर में इज़ाफ़े की वजह प्रतिबंधित संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की ओर से अफ़ग़ानिस्तान की धरती का इस्तेमाल है, जिसे रोकने में ‘अफ़ग़ान सरकार नाकाम रही है’ और सीमा पार से चरमपंथी सुरक्षा बलों, चीनी और पाकिस्तानी नागरिकों के ख़िलाफ़ हमले करते हैं.
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आतंकवादी समूहों और सीमा पर तनाव
पाकिस्तानी प्रशासन के अनुसार, उन्होंने बार-बार अफ़ग़ानिस्तान को उन समूहों के बारे में बताया और सबूत दिए मगर तालिबान सरकार पाकिस्तान की आशंकाएं दूर न कर सकी और यह समूह ज़्यादा आज़ादी से अफ़ग़ानिस्तान से पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हमले की योजना बना रहे हैं.
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इस साल मार्च में अफ़ग़ान तालिबान ने कहा था कि पाकिस्तान के जहाज़ों ने अफ़ग़ानिस्तान की सीमा में पकतीका और ख़ोस्त के इलाक़ों में बमबारी की जिसके बाद पाकिस्तान विदेश मंत्रालय ने बताया कि इस ऑपरेशन में हाफ़िज़ गुल बहादुर ग्रुप से संबंध रखने वाले आतंकवादी निशाने पर थे.
ऐसे में सवाल पैदा होता है कि आख़िर क्या वजह है कि पाकिस्तान की सरकार ने अफ़ग़ानिस्तान में सैनिक कार्रवाई का संकेत दिया? बीबीसी उर्दू ने विशेषज्ञों से बात करके यह जानने की कोशिश की है कि पाकिस्तान की ओर से यह रणनीति क्यों अपनाई गई और इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं.
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