भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी एक नए विवाद में घिर गए हैं। चैंपियंस ट्रॉफी 2025 के एक मैच के दौरान मोहम्मद शमी को खेल के बीच पानी पीते हुए देखा गया, जिसके बाद कुछ मौलवियों ने इस पर आपत्ति जताई। उनका कहना है कि रमजान के पवित्र महीने में रोजा न रखना इस्लामिक कानून के खिलाफ है। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने मोहम्मद शमी की आलोचना करते हुए कहा कि रोजा इस्लाम का अनिवार्य कर्तव्य है, और यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इसे नहीं रखता, तो वह गुनाहगार माना जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि शमी जैसे लोकप्रिय खिलाड़ी के इस कदम से आम लोगों में गलत संदेश जाएगा।
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शमी के समर्थन में उतरे कई लोग, मौलाना साजिद रशीदी ने बताया निजी फैसला
हालांकि, इस विवाद में कई लोगों ने शमी का समर्थन किया है। ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी ने पलटवार करते हुए कहा कि रोजा रखना या न रखना किसी का व्यक्तिगत निर्णय होता है और इसमें किसी को दखल नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि खेल और धर्म को अलग रखा जाना चाहिए और खिलाड़ियों को उनकी फिटनेस और प्रदर्शन के आधार पर आंका जाना चाहिए, न कि धार्मिक मान्यताओं पर।
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रोहित पवार ने किया शमी का बचाव, खेल में धर्म न लाने की अपील
अब इस विवाद में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के विधायक रोहित पवार ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने शमी का समर्थन करते हुए कहा कि वह एक सच्चे भारतीय हैं और उन्होंने कई बार टीम को जीत दिलाई है। पवार ने कहा, “अगर शमी को लगता है कि रोजे की वजह से उनके प्रदर्शन पर असर पड़ेगा और इससे वह अपनी टीम के लिए पूरा योगदान नहीं दे पाएंगे, तो यह उनकी व्यक्तिगत पसंद है। खेलों में धर्म को नहीं लाना चाहिए। अगर आप आज किसी भी मुस्लिम व्यक्ति से पूछेंगे, तो वह गर्व से कहेगा कि मोहम्मद शमी ने देश के लिए बहुत कुछ किया है।
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चोट से उबरकर चैंपियंस ट्रॉफी में शमी की दमदार वापसी
शमी ने हाल ही में चोट से उबरने के बाद चैंपियंस ट्रॉफी में शानदार वापसी की है। उन्होंने चोटिल जसप्रीत बुमराह की गैरमौजूदगी में नई गेंद संभालते हुए बेहतरीन प्रदर्शन किया है। अब तक टूर्नामेंट में उन्होंने आठ विकेट लिए हैं। विश्व कप 2023 के दौरान टखने में चोट लगने के कारण वह लंबे समय तक क्रिकेट से दूर रहे थे, लेकिन अब पूरी तरह फिट होकर शानदार लय में नजर आ रहे हैं।
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खेल बनाम धर्म: शमी विवाद ने छेड़ी नई बहस
यह पहला मौका नहीं है जब किसी खिलाड़ी के धार्मिक आचरण को लेकर बहस छिड़ी हो। इससे पहले भी कई मौकों पर खिलाड़ियों की धार्मिक मान्यताओं को लेकर विवाद हुए हैं। हालांकि, खेल विशेषज्ञों और समर्थकों का मानना है कि खिलाड़ियों की प्राथमिकता उनके प्रदर्शन और फिटनेस होनी चाहिए, न कि धार्मिक परंपराओं का पालन करना। इस पूरे मामले ने खेलों में धर्म को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। जहां एक ओर कुछ लोग मानते हैं कि खिलाड़ियों को अपनी धार्मिक परंपराओं का पालन करना चाहिए, वहीं दूसरी ओर कई लोग यह भी मानते हैं कि पेशेवर खेलों में प्रदर्शन ही सबसे महत्वपूर्ण होता है और खिलाड़ियों को अपने शरीर की आवश्यकताओं के अनुसार निर्णय लेने की आजादी होनी चाहिए।
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