महाकुंभ मेले में कुल 3.20 करोड़ यूनिट बिजली की खपत हुई, जिससे विभाग को प्रति यूनिट नौ रुपये की दर से लगभग 28.80 करोड़ रुपये की आय हुई. वहीं, पूरे मेले को रोशन करने के लिए विभाग ने कुल 211.20 करोड़ रुपये खर्च किए. यह मेला 13 जनवरी से 26 फरवरी तक आयोजित हुआ था. बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए विद्युत विभाग ने 54 हजार खंभे लगाए.
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बिजली आपूर्ति और अधोसंरचना व्यवस्थाएँ
इन पर 1405 किलोमीटर एलटी लाइन और 182 किलोमीटर 11 केवी की एचटी लाइन बिछाई गई. 85 सब स्टेशनों से पूरे मेला क्षेत्र को ऊर्जा दी गई. इसके लिए लगभग 4.25 लाख कैंप कनेक्शन बांटे गए थे. इसके चलते रोज 30 मेगावोल्ट एम्पीयर (एमवीए) ऊर्जा खपत का अनुमान था. लेकिन, प्रतिदिन लगभग 27 एमवीए की खपत हुई. मेला समापन के बाद अब ऊर्जा के तार, एलईडी लाइट्स और ट्रांसफार्मर उतार लिए गए हैं. इन सामानों को महाकुंभ परिसर के पास बने गोदाम में रखा गया है.
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विद्युत खपत और राजस्व संग्रह
इस मेला क्षेत्र में एक से लेकर 1600 किलोवोल्ट एम्पीयर (केवीए) तक कनेक्शन दिए गए. इसमें हजारों की संख्या में व्यावसायिक कनेक्शन भी शामिल हैं. विद्युत विभाग के अफसरों ने बताया कि इन कनेक्शनों से लगभग सात करोड़ रुपये की आमदनी हुई है. विद्युत विभाग के आंकड़ों के अनुसार मेले के दौरान 45 दिनों में शहर में कुल 27.30 करोड़ यूनिट बिजली की खपत हुई है. इस तरह मेला और शहर में मिलाकर कुल 30.50 करोड़ यूनिट बिजली खर्च हुई है, जो मेले से लगभग 90 फीसदी से अधिक है.
अनुमानित बिजली खपत और सौर ऊर्जा का उपयोग
विद्युत विभाग के मुख्य अभियंता पीके सिंह समेत अन्य अफसरों ने मेले में तकरीबन पांच करोड़ यूनिट तक बिजली खपत होने का अनुमान लगाया था. वहीं, मेला क्षेत्र में बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए सोलर एनर्जी का भी सहारा लिया गया था. विद्युत विभाग ने कुल 380.20 करोड़ का प्रोजेक्ट बनाया था. इसे दो हिस्सों में बांटा गया. पहला मेला क्षेत्र के लिए कुल 211.20 करोड़ और दृूसरा शहर के लिए कुल 179 करोड़ का बजट था. प्रोजेक्ट में बिजली घर, स्ट्रीट लाइट, ट्रांसफॉर्मर, केबल आदि की व्यवस्था की गई थी.
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