बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा को अब जेड श्रेणी की सीआरपीएफ सुरक्षा मिलेगी। खुफिया विभाग (आईबी) की रिपोर्ट में उनके प्रति संभावित खतरे की आशंका जताई गई थी, जिसके बाद गृह मंत्रालय ने उनकी सुरक्षा बढ़ाने का निर्णय लिया। रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों और चीन के साथ भारत के संबंधों को ध्यान में रखते हुए, उनकी सुरक्षा को और मजबूत करने की जरूरत महसूस की गई।
दलाई लामा का जीवन और तिब्बत संघर्ष
दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को तिब्बत के ताकत्सेर गांव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ल्हामो थोंडुप था। मात्र दो वर्ष की उम्र में उन्हें 13वें दलाई लामा का पुनर्जन्म माना गया और 1940 में तिब्बत की राजधानी ल्हासा में 14वें दलाई लामा के रूप में औपचारिक रूप से मान्यता दी गई।
1950 में, जब चीन ने तिब्बत पर हमला किया, तो दलाई लामा ने अपने लोगों की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए शांतिपूर्ण प्रयास किए। हालांकि, 1959 में चीन के खिलाफ एक बड़े विद्रोह के असफल होने के बाद उन्हें तिब्बत छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी। तब से वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासन में रह रहे हैं, जहां उन्होंने तिब्बती शरणार्थियों के लिए एक स्थायी समुदाय स्थापित किया।
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नोबेल शांति पुरस्कार और वैश्विक पहचान
दलाई लामा को 1989 में उनके अहिंसक संघर्ष और शांति प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे दुनिया भर में आध्यात्मिकता, करुणा और शांति के संदेशवाहक माने जाते हैं। अब तक वे छह महाद्वीपों और 67 से अधिक देशों की यात्रा कर चुके हैं, जहां उन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय नेताओं और संगठनों से मुलाकात कर तिब्बत की स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान को बचाने की अपील की है।
भारत में निर्वासन और तिब्बती समुदाय का नेतृत्व
भारत में पिछले 62 वर्षों से निर्वासन में रह रहे हैं और तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु के रूप में लाखों अनुयायियों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। धर्मशाला में स्थित उनकी सरकार-इन-एक्साइल (Central Tibetan Administration) तिब्बती समुदाय की सांस्कृतिक और राजनीतिक आवाज बनी हुई है। भारत सरकार ने भी दलाई लामा को शरण देकर तिब्बती संस्कृति को संरक्षित करने में सहयोग किया है।
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भारत-चीन संबंधों के संदर्भ में सुरक्षा बढ़ाना क्यों जरूरी
हाल के वर्षों में भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए, दलाई लामा की सुरक्षा बढ़ाना आवश्यक हो गया था। चीन हमेशा से दलाई लामा को एक “विवादित राजनीतिक व्यक्तित्व” मानता रहा है और उनकी गतिविधियों पर आपत्ति जताता आया है। भारत में उनके प्रति समर्थन को लेकर भी चीन ने कई बार आपत्ति दर्ज कराई है। ऐसे में, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना भारत सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
दलाई लामा की सुरक्षा बढ़ाने के पीछे का कारण
केवल एक धार्मिक गुरु ही नहीं, बल्कि वैश्विक शांति और अहिंसा के प्रतीक भी हैं। उनकी सुरक्षा को बढ़ाने का फैसला उनकी बढ़ती उम्र और मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए लिया गया है। भारत सरकार का यह कदम न केवल उनके प्रति सम्मान को दर्शाता है, बल्कि तिब्बती शरणार्थियों और उनके संघर्ष को समर्थन देने की भी पुष्टि करता है।
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