यह पूरा मामला मध्य प्रदेश के दमोह जिले स्थित मिशन अस्पताल का है, जहां पर एक फर्जी डॉक्टर ने डॉक्टर एन. जॉन कैम के नाम से पहचान बनाई। असल में, इस व्यक्ति का नाम नरेंद्र विक्रमादित्य यादव था, जिसने लंदन में प्रशिक्षित होने का झूठा दावा किया और अस्पताल में भर्ती होने के लिए फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया। वह दिसंबर 2024 में इस अस्पताल में एक कार्डियोलॉजिस्ट के रूप में नियुक्त हुआ। अस्पताल प्रशासन ने बिना किसी ठीक-ठाक जांच के उसे आठ लाख रुपये महीने का वेतन देने का करार किया। इस दौरान, उसने कई मरीजों का इलाज किया और गंभीर दिल की समस्याओं के लिए एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी जैसी जटिल प्रक्रियाओं का संचालन किया।
Also Read : अक्षय तृतीया पर अबूझ मुहूर्त में होंगे सभी शुभ कार्य, जानें तिथि और महत्व
रहीसा बेगम की मौत फर्जी डॉक्टर की सर्जरी के दौरान हार्ट अटैक का दावा, जांच में गड़बड़ी के आरोप
रहीसा बेगम नामक एक महिला को 9 जनवरी को सीने में दर्द हुआ था, जिसके बाद उन्हें 10 जनवरी को जिला अस्पताल भेजा गया। जिला अस्पताल ने उन्हें मिशन अस्पताल भेज दिया, जहां अस्पताल ने बिना किसी उचित जांच के 50 हजार रुपये की मांग की। हालांकि, उनके बेटे नबी कुरैशी ने उन्हें निजी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां पहले डॉ. डीएम संगतानी से जांच करवाई। लेकिन, बाद में उन्हें वापस मिशन अस्पताल भेजा गया, जहां फर्जी डॉक्टर ने उनकी जांच की। इस दौरान डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनकी एक नस 92 प्रतिशत और दूसरी 85 प्रतिशत ब्लॉक हो चुकी है, जिसके बाद सर्जरी की बात कही गई। 14 जनवरी को रहीसा को भर्ती किया गया और 15 जनवरी को सर्जरी के दौरान उनकी मौत हो गई। फर्जी डॉक्टर ने सर्जरी के दौरान हार्ट अटैक की वजह से उनकी मौत का दावा किया, लेकिन अब इस घटना पर गड़बड़ी के आरोप सामने आ रहे हैं।
Also Read : सनी देओल ने बताया करियर में आज तक क्यों नहीं की हॉरर फिल्म, डर है असली वजह
कृष्णा पटेल का शक फर्जी डॉक्टर की पहचान का खुलासा, शिकायत के बाद जांच शुरू
यह सब तब सामने आया जब कृष्णा पटेल नामक एक व्यक्ति अपने दादा का इलाज कराने के लिए मिशन अस्पताल गया। यहां, अस्पताल प्रशासन ने पहले तो 50 हजार रुपये की मांग की, फिर उन्हें एंजियोग्राफी के बाद ओपन हार्ट सर्जरी का सुझाव दिया। कृष्णा को शक हुआ और उसने अस्पताल में मौजूद डॉक्टर की पहचान पर सवाल उठाए। जब उसने इस बारे में जांच की, तो उसे यह जानकारी मिली कि वह डॉक्टर असल में फर्जी था। कृष्णा ने इस मामले को लेकर जबलपुर और नरसिंहपुर से दस्तावेज एकत्र किए और बाल आयोग के अध्यक्ष दीपक तिवारी से शिकायत की। इसके बाद, दीपक तिवारी ने मामले को कलेक्टर को सौंपा, जिसके बाद जांच शुरू की गई। हालांकि, फर्जी डॉक्टर को इसके बारे में पहले ही जानकारी हो गई थी और उसने फरवरी में इस्तीफा देकर दमोह छोड़ दिया।
Also Read : जितेंद्र की इस फिल्म से पड़ गया था धर्मेंद्र, अमिताभ, राजेश खन्ना जैसे सुपरस्टार्स का करियर खतरे में
अस्पताल प्रशासन की लापरवाही फर्जी डॉक्टर की नियुक्ति और सख्त जांच की आवश्यकता
यह मामला अस्पताल प्रशासन की गंभीर लापरवाही को उजागर करता है, जिसने बिना किसी जांच के एक फर्जी डॉक्टर को बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी। इस घटना ने न सिर्फ अस्पताल के सिस्टम की कमजोरियों को सामने लाया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि किस तरह से एक व्यक्ति अपनी पहचान चुराकर दूसरों के जीवन से खेल सकता है। फिलहाल, पुलिस और अस्पताल प्रशासन मामले की गहन जांच कर रहे हैं, ताकि इस अपराध के जिम्मेदार लोगों को कड़ी सजा दी जा सके और भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचा जा सके।
Also Read : सविन बंसल की सख्ती से भूमाफिया में हड़कंप, अधिकारियों को दिए कड़े निर्देश
More Stories
India Seeks Mehul Choksi’s Extradition Officials to Visit Belgium
How India and Belgium Foiled Mehul Choksi’s Escape to Switzerland
नई तकनीकों के लिए ₹10,000 करोड़ की फंड योजना