हिंदी सिनेमा में विधु विनोद चोपड़ा की सहायक के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाली निर्देशक रत्ना सिन्हा जल्द ही अपनी नई फिल्म की घोषणा करने वाली हैं. वकीलों के परिवार में जन्मी रत्ना हमेशा से कुछ नया करने में विश्वास रखती हैं। इन दिनों उनकी हाल ही में री-रिलीज हुई फिल्म शादी में जरूर आना काफी चर्चा में है. हाल ही में एक इंटरव्यू में रत्ना सिन्हा ने कहा कि लोगों को वही काम करना चाहिए जिससे उन्हें खुशी मिले, बजाय इसके कि वे केवल पैसे के पीछे भागें.
दिल्ली से मुंबई तक का सफर: रत्ना सिन्हा की निर्देशन यात्रा
मैं दिल्ली की हूं, लेकिन अब तक की जिंदगी का 80 प्रतिशत हिस्सा मुंबई में बिताया है. दिल्ली के हंसराज कॉलेज में शाहरुख खान हमारे सीनियर थे. मैं मुंबई 1992 में आई थी, मास मीडिया की पढ़ाई करने. दो साल बाद ही मुझे निर्माता-निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘1942: अ लव स्टोरी’ में बतौर सहायक निर्देशक काम मिल गया और बस, गाड़ी चल निकली. स्वतंत्र निर्देशन की शुरुआत मेरी 1996 में दूरदर्शन के शो ‘तरंग’ से हुई. इसके बाद ‘सहर’ नाम की एक सीरीज की स्टार प्लस के लिए, और फिर लगातार कई प्रोजेक्ट्स का हिस्सा बनी. 2005 से 2011 के बीच मैंने कई शोज प्रोड्यूस किए, लेकिन एक दिन अहसास हुआ कि मेरा असली सपना तो फिल्में बनाना था. तभी, टीवी एकदम से छोड़ दिया और फिल्मों पर काम शुरू कर दिया.
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‘शादी में जरूर आना’ से करियर का नया मोड़
मेरे करियर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट फिल्म ‘शादी में जरूर आना’ रही. इस फिल्म को दर्शकों ने खूब पसंद किया. इसके गाने आज भी लोगों की प्लेलिस्ट मे बने हुए हैं. इस फिल्म की सफलता के बाद मुझे फिर से कई टीवी शोज के ऑफर मिले, लेकिन मैंने मना कर दिया क्योंकि मुझे पता था कि मेरा रास्ता अब फिल्मों का ही है. मेरा मानना है कि सिर्फ पैसे कमाने के लिए कोई भी काम नहीं करना चाहिए. काम वह करना चाहिए जिसमें खुशी मिलती हो.
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पहली फिल्म की यादें और निर्देशन का सफर
फिल्म ‘शादी में जरूर आना’ की शूटिंग हमने ‘तू बन जा गली बनारस की’ गाने की शूटिंग से की, एक शॉट है इसका जिसमें राजकुमार और कृति के पीछे से ट्रेन गुजर रही है. वह सीन मुझे आज भी भुलाए नहीं भूलता. उसके बाद दो फिल्में ‘मिडल क्लास लव’ और ‘किसको था पता’ भी बना चुकी हूं, लेकिन पहला प्यार और पहली फिल्म भुलाये नहीं भूलती. विनोद जी के प्रति मैं हमेशा आभारी रहूंगी. ऐसे सच्चे और ईमानदार इंसान इस इंडस्ट्री में कम ही मिलते हैं, जो नए निर्देशकों को मौका देने और उन पर भरोसा करने का हौसला रखते हैं.
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